राम चरित मानस अयोध्याकांड दोहा संख्या ५७:-
चौ॰-देव पितर सब तुन्हहि गोसाई, राखहुँ पलक नयन की नाई ||
अवधि अंबु प्रिय परिजन मीना, तुम्ह करुनाकर धरम धुरीना ||१||
अस बिचारि सोइ करहु उपाई, सबहि जिअत जेहिं भेंटेहु आई ||
जाहु सुखेन बनहि बलि जाऊँ, करि अनाथ जन परिजन गाऊँ ||२||
सब कर आजु सुकृत फल बीता, भयउ कराल कालु बिपरीता ||
बहुबिधि बिलपि चरन लपटानी, परम अभागिनि आपुहि जानी ||३||
दारुन दुसह दाहु उर ब्यापा, बरनि न जाहिं बिलाप कलापा ||
राम उठाइ मातु उर लाई, कहि मृदु बचन बहुरि समुझाई ||४||
दो -समाचार तेहि समय सुनि सीय उठी अकुलाइ,
जाइ सासु पद कमल जुग बंदि बैठि सिरु नाइ ||५७ ||