राम चरित मानस अयोध्याकांड दोहा संख्या १२:-
चौ॰-सुनि सुर बिनय ठाढ़ि पछिताती, भइउँ सरोज बिपिन हिमराती ||
देखि देव पुनि कहहिं निहोरी, मातु तोहि नहिं थोरिउ खोरी ||१||
बिसमय हरष रहित रघुराऊ, तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ ||
जीव करम बस सुख दुख भागी, जाइअ अवध देव हित लागी ||२||
बार बार गहि चरन सँकोचौ, चली बिचारि बिबुध मति पोची ||
ऊँच निवासु नीचि करतूती, देखि न सकहिं पराइ बिभूती ||३||
आगिल काजु बिचारि बहोरी, करहहिं चाह कुसल कबि मोरी ||
हरषि हृदयँ दसरथ पुर आई, जनु ग्रह दसा दुसह दुखदाई ||४||
दो -नामु मंथरा मंदमति चेरी कैकेइ केरि,
अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा मति फेरि ||१२ ||