राम चरित मानस अयोध्याकांड दोहा संख्या १४०:-
राम संग सिय रहति सुखारी, पुर परिजन गृह सुरति बिसारी ||
छिनु छिनु पिय बिधु बदनु निहारी, प्रमुदित मनहुँ चकोरकुमारी ||
नाह नेहु नित बढ़त बिलोकी, हरषित रहति दिवस जिमि कोकी ||
सिय मनु राम चरन अनुरागा, अवध सहस सम बनु प्रिय लागा ||
परनकुटी प्रिय प्रियतम संगा, प्रिय परिवारु कुरंग बिहंगा ||
सासु ससुर सम मुनितिय मुनिबर, असनु अमिअ सम कंद मूल फर ||
नाथ साथ साँथरी सुहाई, मयन सयन सय सम सुखदाई ||
लोकप होहिं बिलोकत जासू, तेहि कि मोहि सक बिषय बिलासू ||
दो -सुमिरत रामहि तजहिं जन तृन सम बिषय बिलासु,
रामप्रिया जग जननि सिय कछु न आचरजु तासु ||१४० ||