राम चरित मानस अयोध्याकांड दोहा संख्या १९८:-
जहँ तहँ लोगन्ह डेरा कीन्हा, भरत सोधु सबही कर लीन्हा ||
सुर सेवा करि आयसु पाई, राम मातु पहिं गे दोउ भाई ||
चरन चाँपि कहि कहि मृदु बानी, जननीं सकल भरत सनमानी ||
भाइहि सौंपि मातु सेवकाई, आपु निषादहि लीन्ह बोलाई ||
चले सखा कर सों कर जोरें, सिथिल सरीर सनेह न थोरें ||
पूँछत सखहि सो ठाउँ देखाऊ, नेकु नयन मन जरनि जुड़ाऊ ||
जहँ सिय रामु लखनु निसि सोए, कहत भरे जल लोचन कोए ||
भरत बचन सुनि भयउ बिषादू, तुरत तहाँ लइ गयउ निषादू ||
दो -जहँ सिंसुपा पुनीत तर रघुबर किय बिश्रामु,
अति सनेहँ सादर भरत कीन्हेउ दंड प्रनामु ||१९८ ||