राम चरित मानस अयोध्याकांड दोहा संख्या २०३:-
कियउ निषादनाथु अगुआईं, मातु पालकीं सकल चलाईं ||
साथ बोलाइ भाइ लघु दीन्हा, बिप्रन्ह सहित गवनु गुर कीन्हा ||
आपु सुरसरिहि कीन्ह प्रनामू, सुमिरे लखन सहित सिय रामू ||
गवने भरत पयोदेहिं पाए, कोतल संग जाहिं डोरिआए ||
कहहिं सुसेवक बारहिं बारा, होइअ नाथ अस्व असवारा ||
रामु पयोदेहि पायँ सिधाए, हम कहँ रथ गज बाजि बनाए ||
सिर भर जाउँ उचित अस मोरा, सब तें सेवक धरमु कठोरा ||
देखि भरत गति सुनि मृदु बानी, सब सेवक गन गरहिं गलानी ||
दो -भरत तीसरे पहर कहँ कीन्ह प्रबेसु प्रयाग,
कहत राम सिय राम सिय उमगि उमगि अनुराग ||२०३ ||