राम चरित मानस अयोध्याकांड दोहा संख्या २२४:-
निज गुन सहित राम गुन गाथा, सुनत जाहिं सुमिरत रघुनाथा ||
तीरथ मुनि आश्रम सुरधामा, निरखि निमज्जहिं करहिं प्रनामा ||
मनहीं मन मागहिं बरु एहू, सीय राम पद पदुम सनेहू ||
मिलहिं किरात कोल बनबासी, बैखानस बटु जती उदासी ||
करि प्रनामु पूँछहिं जेहिं तेही, केहि बन लखनु रामु बैदेही ||
ते प्रभु समाचार सब कहहीं, भरतहि देखि जनम फलु लहहीं ||
जे जन कहहिं कुसल हम देखे, ते प्रिय राम लखन सम लेखे ||
एहि बिधि बूझत सबहि सुबानी, सुनत राम बनबास कहानी ||
दो -तेहि बासर बसि प्रातहीं चले सुमिरि रघुनाथ,
राम दरस की लालसा भरत सरिस सब साथ ||२२४ ||