राम चरित मानस अयोध्याकांड दोहा संख्या २३०:-
उठि कर जोरि रजायसु मागा, मनहुँ बीर रस सोवत जागा ||
बाँधि जटा सिर कसि कटि भाथा, साजि सरासनु सायकु हाथा ||
आजु राम सेवक जसु लेऊँ, भरतहि समर सिखावन देऊँ ||
राम निरादर कर फलु पाई, सोवहुँ समर सेज दोउ भाई ||
आइ बना भल सकल समाजू, प्रगट करउँ रिस पाछिल आजू ||
जिमि करि निकर दलइ मृगराजू, लेइ लपेटि लवा जिमि बाजू ||
तैसेहिं भरतहि सेन समेता, सानुज निदरि निपातउँ खेता ||
जौं सहाय कर संकरु आई, तौ मारउँ रन राम दोहाई ||
दो -अति सरोष माखे लखनु लखि सुनि सपथ प्रवान,
सभय लोक सब लोकपति चाहत भभरि भगान ||२३० ||