राम चरित मानस अयोध्याकांड दोहा संख्या २५३:-
कीन्ही मातु मिस काल कुचाली, ईति भीति जस पाकत साली ||
केहि बिधि होइ राम अभिषेकू, मोहि अवकलत उपाउ न एकू ||
अवसि फिरहिं गुर आयसु मानी, मुनि पुनि कहब राम रुचि जानी ||
मातु कहेहुँ बहुरहिं रघुराऊ, राम जननि हठ करबि कि काऊ ||
मोहि अनुचर कर केतिक बाता, तेहि महँ कुसमउ बाम बिधाता ||
जौं हठ करउँ त निपट कुकरमू, हरगिरि तें गुरु सेवक धरमू ||
एकउ जुगुति न मन ठहरानी, सोचत भरतहि रैनि बिहानी ||
प्रात नहाइ प्रभुहि सिर नाई, बैठत पठए रिषयँ बोलाई ||
दो -गुर पद कमल प्रनामु करि बैठे आयसु पाइ,
बिप्र महाजन सचिव सब जुरे सभासद आइ ||२५३ ||