राम चरित मानस अयोध्याकांड दोहा संख्या ८६:-
चौ॰-जागे सकल लोग भएँ भोरू, गे रघुनाथ भयउ अति सोरू ||
रथ कर खोज कतहहुँ नहिं पावहिं, राम राम कहि चहु दिसि धावहिं ||१||
मनहुँ बारिनिधि बूड़ जहाजू, भयउ बिकल बड़ बनिक समाजू ||
एकहि एक देंहिं उपदेसू, तजे राम हम जानि कलेसू ||२||
निंदहिं आपु सराहहिं मीना, धिग जीवनु रघुबीर बिहीना ||
जौं पै प्रिय बियोगु बिधि कीन्हा, तौ कस मरनु न मागें दीन्हा ||३||
एहि बिधि करत प्रलाप कलापा, आए अवध भरे परितापा ||
बिषम बियोगु न जाइ बखाना, अवधि आस सब राखहिं प्राना ||४||
दो -राम दरस हित नेम ब्रत लगे करन नर नारि,
मनहुँ कोक कोकी कमल दीन बिहीन तमारि ||८६ ||