राम चरित मानस अयोध्याकांड दोहा संख्या ९३:-
चौ॰-अस बिचारि नहिं कीजा रोसू, काहुहि बादि न देइअ दोसू ||
मोह निसाँ सबु सोवनिहारा, देखिअ सपन अनेक प्रकारा ||१||
एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी, परमारथी प्रपंच बियोगी ||
जानिअ तबहिं जीव जग जागा, जब जब बिषय बिलास बिरागा ||२||
होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा, तब रघुनाथ चरन अनुरागा ||
सखा परम परमारथु एहू, मन क्रम बचन राम पद नेहू ||३||
राम ब्रह्म परमारथ रूपा, अबिगत अलख अनादि अनूपा ||
सकल बिकार रहित गतभेदा, कहि नित नेति निरूपहिं बेदा ||४||
दो -भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल,
करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहि जग जाल ||९३ ||