राम चरित मानस बालकाण्ड २७२:-
चौ॰-लखन कहा हँसि हमरें जाना । सुनहु देव सब धनुष समाना ॥
का छति लाभु जून धनु तौरें । देखा राम नयन के भोरें ॥ १॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू । मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू ।
बोले चितइ परसु की ओरा । रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा ॥ २॥
बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही । केवल मुनि जड़ जानहि मोही ॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही । बिस्व बिदित छत्रियकुल द्रोही ॥ ३॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही । बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही ॥
सहसबाहु भुज छेदनिहारा । परसु बिलोकु महीपकुमारा ॥ ४॥
दो॰ मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर ।
गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर ॥ २७२ ॥