राम चरित मानस बालकाण्ड दोहा संख्या १५३:-
मासपारायण,पाँचवाँ विश्राम
चौ॰-सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी । जो गिरिजा प्रति संभु बखानी ॥
बिस्व बिदित एक कैकय देसू । सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू ॥१॥
धरम धुरंधर नीति निधाना । तेज प्रताप सील बलवाना ॥
तेहि कें भए जुगल सुत बीरा । सब गुन धाम महा रनधीरा ॥२॥
राज धनी जो जेठ सुत आही । नाम प्रतापभानु अस ताही ॥
अपर सुतहि अरिमर्दन नामा । भुजबल अतुल अचल संग्रामा ॥ ३॥
भाइहि भाइहि परम समीती । सकल दोष छल बरजित प्रीती ॥
जेठे सुतहि राज नृप दीन्हा । हरि हित आपु गवन बन कीन्हा ॥ ४॥
दो॰ जब प्रतापरबि भयउ नृप फिरी दोहाई देस ।
प्रजा पाल अति बेदबिधि कतहुँ नहीं अघ लेस ॥ १५३ ॥