राम चरित मानस उत्तरकांड दोहा संख्या २३:-
चौ॰-फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन, रहहि एक सँग गज पंचानन ||
खग मृग सहज बयरु बिसराई, सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई ||
कूजहिं खग मृग नाना बृंदा, अभय चरहिं बन करहिं अनंदा ||
सीतल सुरभि पवन बह मंदा, गूंजत अलि लै चलि मकरंदा ||
लता बिटप मागें मधु चवहीं, मनभावतो धेनु पय स्त्रवहीं ||
ससि संपन्न सदा रह धरनी, त्रेताँ भइ कृतजुग कै करनी ||
प्रगटीं गिरिन्ह बिबिध मनि खानी, जगदातमा भूप जग जानी ||
सरिता सकल बहहिं बर बारी, सीतल अमल स्वाद सुखकारी ||
सागर निज मरजादाँ रहहीं, डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहीं ||
सरसिज संकुल सकल तड़ागा, अति प्रसन्न दस दिसा बिभागा ||
दो -बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज,
मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र के राज ||२३ ||