राम चरित मानस उत्तरकांड दोहा संख्या २६:-
चौ॰-प्रातकाल सरऊ करि मज्जन, बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन ||
बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं, सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं ||
अनुजन्ह संजुत भोजन करहीं, देखि सकल जननीं सुख भरहीं ||
भरत सत्रुहन दोनउ भाई, सहित पवनसुत उपबन जाई ||
बूझहिं बैठि राम गुन गाहा, कह हनुमान सुमति अवगाहा ||
सुनत बिमल गुन अति सुख पावहिं, बहुरि बहुरि करि बिनय कहावहिं ||
सब कें गृह गृह होहिं पुराना, रामचरित पावन बिधि नाना ||
नर अरु नारि राम गुन गानहिं, करहिं दिवस निसि जात न जानहिं ||
दो -अवधपुरी बासिन्ह कर सुख संपदा समाज,
सहस सेष नहिं कहि सकहिं जहँ नृप राम बिराज ||२६ ||