राम चरित मानस उत्तरकांड दोहा संख्या ४३:-
चौ॰-एक बार रघुनाथ बोलाए, गुर द्विज पुरबासी सब आए ||
बैठे गुर मुनि अरु द्विज सज्जन, बोले बचन भगत भव भंजन ||
सनहु सकल पुरजन मम बानी, कहउँ न कछु ममता उर आनी ||
नहिं अनीति नहिं कछु प्रभुताई, सुनहु करहु जो तुम्हहि सोहाई ||
सोइ सेवक प्रियतम मम सोई, मम अनुसासन मानै जोई ||
जौं अनीति कछु भाषौं भाई, तौं मोहि बरजहु भय बिसराई ||
बड़ें भाग मानुष तनु पावा, सुर दुर्लभ सब ग्रंथिन्ह गावा ||
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा, पाइ न जेहिं परलोक सँवारा ||
दो -सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताइ,
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोष लगाइ ||४३ ||