राम चरित मानस उत्तरकांड दोहा संख्या ६:-
चौ॰-भरतानुज लछिमन पुनि भेंटे, दुसह बिरह संभव दुख मेटे ||
सीता चरन भरत सिरु नावा, अनुज समेत परम सुख पावा ||
प्रभु बिलोकि हरषे पुरबासी, जनित बियोग बिपति सब नासी ||
प्रेमातुर सब लोग निहारी, कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी ||
अमित रूप प्रगटे तेहि काला, जथाजोग मिले सबहि कृपाला ||
कृपादृष्टि रघुबीर बिलोकी, किए सकल नर नारि बिसोकी ||
छन महिं सबहि मिले भगवाना, उमा मरम यह काहुँ न जाना ||
एहि बिधि सबहि सुखी करि रामा, आगें चले सील गुन धामा ||
कौसल्यादि मातु सब धाई, निरखि बच्छ जनु धेनु लवाई ||
छं -जनु धेनु बालक बच्छ तजि गृहँ चरन बन परबस गईं,
दिन अंत पुर रुख स्त्रवत थन हुंकार करि धावत भई ||
अति प्रेम सब मातु भेटीं बचन मृदु बहुबिधि कहे,
गइ बिषम बियोग भव तिन्ह हरष सुख अगनित लहे ||
दो -भेटेउ तनय सुमित्राँ राम चरन रति जानि,
रामहि मिलत कैकेई हृदयँ बहुत सकुचानि ||६(क) ||
लछिमन सब मातन्ह मिलि हरषे आसिष पाइ,
कैकेइ कहँ पुनि पुनि मिले मन कर छोभु न जाइ ||६ ||