राम चरित मानस उत्तरकांड दोहा संख्या ८३:-
चौ॰-देखि चरित यह सो प्रभुताई, समुझत देह दसा बिसराई ||
धरनि परेउँ मुख आव न बाता, त्राहि त्राहि आरत जन त्राता ||
प्रेमाकुल प्रभु मोहि बिलोकी, निज माया प्रभुता तब रोकी ||
कर सरोज प्रभु मम सिर धरेऊ, दीनदयाल सकल दुख हरेऊ ||
कीन्ह राम मोहि बिगत बिमोहा, सेवक सुखद कृपा संदोहा ||
प्रभुता प्रथम बिचारि बिचारी, मन महँ होइ हरष अति भारी ||
भगत बछलता प्रभु कै देखी, उपजी मम उर प्रीति बिसेषी ||
सजल नयन पुलकित कर जोरी, कीन्हिउँ बहु बिधि बिनय बहोरी ||
दो -सुनि सप्रेम मम बानी देखि दीन निज दास,
बचन सुखद गंभीर मृदु बोले रमानिवास ||८३(क) ||
काकभसुंडि मागु बर अति प्रसन्न मोहि जानि,
अनिमादिक सिधि अपर रिधि मोच्छ सकल सुख खानि ||८३(ख) ||